जबलपुर भारतवर्ष के हृदय स्थल मध्यप्रदेश का एक ऐसा शहर है। जिसने पूरे भारतवर्ष में एक अलग पहचान बनाई है। जबलपुर शहर का नाम जाबालि ऋषि के नाम से लिया गया है। जबलपुर शहर सिर्फ एक मात्र शहर नहीं है | यह महर्षि महेशयोगी की जन्म भूमि है, यह ओशो की तपो भूमि है, यहां माँ सलिला माँ नर्मदा अपने पावन जल से हमारे जीवन को वरदान दे रही हैं।
जबलपुर शहर में अनेक धार्मिक अनुष्ठान होते हैं और समय-समय पर लगातार धर्म-कर्म अनेक नागरिक बंधुओं द्वारा किये जाते हैं। जबलपुर शहर को इसीलिए संस्कारधानी, लघुकाशी, महाकौशल, जाबालिपुरम, जब्बलपुर आदि नामों से भी जाना जाता है।
जबलपुर में हर धार्मिक महोत्सव चाहे वह किसी भी धर्म का हो पूर्ण उत्साह से राष्ट्रीय एकता के साथ मनाया जाता है। इन त्योहारों में जबलपुर का नवरात्रि त्यौहार (जबलपुर नवरात्रि) एक एैसा त्यौहार है जिसने देश-विदेश में एक अलग पहचान बनाई है। इस त्यौहार में जबलपुर शहर की कई माँ-दुर्गा समितियाँ - देश-विदेश की कई सामाजिक बुराईयों को लेकर, अच्छे संदेशों को लेकर, राष्ट्र हित के लिये, मानव कल्याण के लिये अनेक झांकियाँ बनाती हैं जिसे देखकर लोग सीख मिलती हैं और राष्ट्र हित, समाज हित के लिये जागरूक होते हैं।
इसी क्रम में जबलपुर का एक संस्थान “नर्मदा संदेश एक संकल्प परिवार” द्वारा कई वर्षों से इसके लिये कार्य किया जा रहा है। जिनके प्रयास सराहनीय है। इस परिवार के सरंक्षक श्री निरन्द सिंह ठाकुर “नीर” जी और परिवार के मुखिया श्री शैलेन्द्र सिंह ठाकुर जी के प्रयासों के चलते प्रतिवर्ष दुर्गा समितियों को प्रोत्साहित करने का कार्य कर रहे हैं और माँ रेवा को स्वच्छ और निर्मल रखने का आग्रह करते हैं और कहते हैं-
“यही उद्देश्य सर्वथा
स्वच्छ निर्मल नर्मदा”
जबलपुर नवरात्रि का मुख्य दशहरा चल समारोह पूरे विश्व में अपनी अनूठी पहचान रखता है, जिसमें जबलपुर की सेठानी “सुनरहाई” की देवी माँ, जबलपुर की महारानी “श्री वृह्द महाकाली” गढ़ाफाटक आदि मुख्य आकर्षण होते हैं। इस चल समारोह में शहर के कई कलाकार अपनी श्रृद्धा को माँ भवानी आदि शक्ति दुर्गा को समर्पित करते हैं।
शहर के मुख्य चल समारोह का नेतृत्व श्री गोविन्दगंज राम लीला समिति द्वारा विगत कई वर्षों से किया जा रहा किया जाता है। जिसमें श्रीरामचन्द्र, रावण, भगवान श्रीगणेश, माँ दुर्गाजी आदि की झांकियाँ शामिल होती है।
इसी क्रम में गढ़ा चल समारोह भी अपना स्वर्णिम उत्सव बना चुका है। जिसका नेतृत्व श्री रामलीला गढ़ा समिति द्वारा किया जा रहा है।
गढ़ा क्षेत्र एक क्षेत्र नहीं यह क्रांतिकारियों का गढ़ रहा है, जिसकी साक्षी हर एक इमारत एवं रीति रिवाज है। वीरांगणा रानी दुर्गावती की स्मृति में गढ़ा मुख्य समिति श्री वीरांगणा गोड़वाना दुर्गाउत्सव समिति है जहाँ, माँ के दर्शन करने दूर-दूर से लोग आते हैं।
इसीक्रम में भारत माँ के सच्चे सपूत वीर राजाशंकरशाह और उनके पुत्र रघुनाथशाह, राजाशंकर शाह की वीर रानी फूल कुंवर का नाम आता है जिन्होंने अंग्रेजों से लोहा लिया। राजाशंकरशाह और रघुनाथशाह की कुल देवी “श्री माला देवी” एक प्रचीनतम मंदिर है, जहाँ जो भी भक्त सच्चे मन से “श्री माला देवी” से आराधना करता है, उसे फल मिलता हैं यही “श्री माला देवी”, मंदिर के पास माँ चर्तुभुजी दुर्गोत्सव समिति जो पुरवा चल समारोह का नेतृत्व करती है और मुख्य आकर्षण का केंद्र होती हैं।
गढ़ा चल समारोह में कोष्टा परिवार द्वारा महाकाली माँ सभी भक्तों को आशीर्वाद देने निकलती है।
इसीक्रम में गढ़ा जो अपने देशप्रेम और बलिदान के लिये जाना जाता है उसी का आवाह्न करते हुये वंदेमातरम् दुर्गोत्सव समिति देशभक्ति के तिरंगे रंग में गढ़ा चल समारोह का मुख्य आकर्षण रखती है और लोगों में देशभक्ति की अलख जगाती है।