चौसठ योगिनी मंदिर
चौंसठ योगिनी मंदिर जबलपुर की ऐतिहासिक संपन्नता में एक और अध्याय जोड़ता है। प्रसिद्ध संगमरमर चट्टान के पास स्थित इस मंदिर में देवी दुर्गा की 64 अनुषंगिकों की प्रतिमा है। इस मंदिर की विषेशता इसके बीच में स्थापित भागवान शिव की प्रतिमा है, जो कि देवियों की प्रतिमा से घिरा हुआ है। इस मंदिर का निर्माण सन् 1000 के आसपास कलीचुरी वंश ने करवाया था। मंदिर के सैनटोरियम में रानी दुर्गावती की मंदिर की यात्रा से संबंधित एक शिलालेख भी देखा जा सकता है। यहां एक सुरंग भी है जो चौंसठ योगिनी मंदिर को गोंड रानी दुर्गावती के महल से जोड़ती है। यह मंदिर एक विशाल परिसर में फैला हुआ है और इसके हर एक कोने से भव्यता झलकती है। बेशक, अगर आप जबलपुर जा रहे हैं तो यह मंदिर जरूर जाएं।
भारत में कई स्थान विविधताओं और रहस्यों को समेटे हुए हैं। इनमें कई चीजें ऐसी भी हैं, जो लोगों का आश्चर्य चकित कर देती हैं। इन्हीं में शुमार है जबलपुर का भेड़ाघाट स्थित 64 योगिनी मंदिर...। इस मंदिर में आज भी चौसठ योगिनियां (प्रतिमाएं) पहरा देती नजर आती हैं। कभी तंत्र साधना के लिए पूरे विश्व में विख्यात रहा यह मंदिर काल गणना का भी केन्द्र रहा। इसे गोलकी मठ के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर के मध्य में शिव-पार्वती के वृषभ (बैल) पर सवार आलौकिक प्रतिमा है, जिसके दर्शन के लिए नवरात्रि में भक्तों की भीड़ उमड़ रही है।
दसवीं सदी की मूर्तियां
चौसठ योगिनी मंदिर वृत्ताकार यानी गोल आकार का है। बीच में एक अद्भुत नक्कासीदार मंदिर है। इस मंदिर के गर्भगृह में शिव-पार्वती प्रतिमा है। इतिहासविद् बताते हैं यह प्रतिमा दुर्लभ है। वृषभ यानी नंदी पर सवार श्रंगारयुक्त ऐसी प्रतिमा देश और किसी जगह पर नहीं है। इतिहासकार डॉ. आरके शर्मा के अनुसार यह मंदिर दसवीं शताब्दि का है। मंदिर त्रिभुजाकार 81 कोणों पर आधारित है, जिसके प्रत्येक कोण पर योगिनी की स्थापना की गई थी. इसी स्थान पर गुप्त काल में सप्त या अष्ट मातृकाएं स्थापित थीं। 12 वीं शताब्दी में गुजरात की रानी गोसलदेवी ने यहां गौरीशंकर मंदिर का निर्माण कराया था।
कैसे हुआ होगा निर्माण
करीब ढाई सौ मीटर की ऊचाई पर बने चौसठ योगिनी मंदिर में पूरा ढांचा भारी भरकम व वजनदार पत्थरों का बना है। तीन दशक पहले ही यहां पक्की सीढिय़ां बनाई गई हैं। लोग यह देखकर हैरान रह जाते हैं कि इतनी ऊंची पहाड़ी पर वजनदार को कैसे चढ़ाया और तराशा गया होगा। हर मूर्ति की अपनी अलग आभा और खासियत है। हालांकि मुगलकाल में अधिकांश मूर्तियों को खंडित कर दिया गया है, लेकिन इन खंडित मूर्तियों में सदियों पुराना शिल्प अपना लोहा मनवाता नजर आता है।
देवाधिदेव का पहरा
महादेव को नाट्य विधा में पारंगत माना जाता है, वहां मां गौरी लाश्य नृत्य की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। चौसठ योगिनियां भी नृत्य विधा के साथ मारण, मोहन, सम्मोहन, उच्चाटन और वशीकरण जैसी विधाओं में दक्ष थीं। इनकी उत्पत्ति महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा से ही मानी जाती है, तो मां शक्ति की इच्छा के अनुरुप सृष्टि के संचालन में अपनी भूमिका निभाती हैं। ङ्क्षकवंदंति है कि चौसठ योगिनी मंदिर में आज भी ऐसा प्रतीत होता है कि योगनियां अब भी शिव-पार्वती को पहरा देते हुए नृत्य करती हैं।
गोलकीमठ नाम से प्रसिद्धि
इतिहासकारों के अनुसार भेड़ाघाट की संगमरमरी वादियों के समीप बना चौसठ योगिनी मंदिर एक जमाने में गोलकी मठ के नाम से भी प्रसिद्ध रहा। इतिहासकार राजकुमार गुप्ता के अनुसार गोलकीमठ को विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त था और यह काल गणना का बड़ा केंद्र हुआ करता था। यहां देश ही नहीं विदेशों से विद्यार्थी विद्याअध्ययन के लिए आते थे। गोलकीमठ विश्वविद्यालय में गणित, ज्योतिष गणित, संस्कृत साहित्य, तंत्र विज्ञान की शाखाएं थीं। इनमें से कल्चुरी काल में निर्मित तंत्र साधना केन्द्र चौसठ योगिनी मंदिर अब भी मौजूद है। बाकी शाखाओं को संचालित करने वाले भवन अस्तित्व में नहीं हैं।