शारदा देवी मंदिर, शारदा चौक जबलपुर
Sharda Devi Mandir, Sharda Chowk, Jabalpur
मुख्य जबलपुर से 4.5 km दूर शारदा चौक स्थित मदन महल की पहाड़ी (राजा मदनशाह के किले के कारण पहाड़ी का नाम मदन महल की पहाड़ी ) पर समुद्र तल से लगभग 200 फीट ऊंचाई पर माता शारदा का अति प्राचीनतम गोडकालीन (कल्चुरी काल) मंदिर स्थित है | मां शारदा का यह अद्भुत मंदिर मध्य प्रेदश की मदनमहल पहाड़ी पर स्थित है। जहां यह मंदिर है वहां कभी पूर्व गोंडवाना साम्राज्य का क्षेत्र हुआ करता था। यह भव्य मंदिर आज भी विजय और इच्छाओं की पूर्ति का प्रतिक है। अपने दुख-दर्द को लेकर भक्त माता के दरबार में हाजरी लगाते है, और माता उनकी मुराद पूरी करती है। यह मंदिर हिन्दू धर्म से जुड़े लोगों के लिए बड़ा आस्था का केंद्र माना जाता है। खास मौकों पर यहां भव्य आयोजन किए जाते हैं, जिसमें शामिल होने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। आगे जानिए इस मंदिर से जुड़ी अन्य धार्मिक मान्यताएं।
मंदिर की प्राचीन प्रतिमा
देवी मां की मूल प्रतिमा मंदिर के पिछले हिस्से में स्थापित की गई है, मंदिर के सामने वाली प्रतिमा मूल प्रतिमा नहीं है। देवी मां की यह मूर्ति लगभग 77 साल पूरानी है। माना जाता है कि 100 साल पहले स्थानीय यहां रहने वाले पुजारी को मार दिया गया था और देवी मां की प्रतिमा को खंडित कर दिया गया था। जिसके बाद यहां नई प्रतिमा की स्थापना की गई थी। माना जाता है कि स्थानीय लोगों की मदद से मंदिर को नया स्वरूप प्रदान किया गया था। देवी मां के मंदिर से कुछ ही दूर सामने वाली पहाड़ी पर भगवान हनुमान का भी मंदिर है जिनके दर्शन किए बिना मां शारदा के दर्शन अधूरा माना जाता है।
कैसे पहुंचे शारदा माँ के द्वार
मां शारदा का यह पहाड़ी मंदिर मध्य प्रदेश, जबलपुर के मदन महल की पहाड़ियों पर स्थित है। जबलपुर से आप सड़क मार्गों के द्वारा माता के मंदिर तक पहुंच सकते हैं। इसके अलावा जलबपुर रेलवे का सहारा लेकर आप यहां तक पहुंच सकते हैं। यहां का नजदीकी हवाई अड्डा जबलपुर एयरपोर्ट है। लोकल टैक्सी सुविधा, मेट्रो बस, ऑटो और OLA टैक्सी की सुविधाएँ लेकर आप माँ के मंदिर में आसानी से पहुँच सकते है |
550 साल पुराना मंदिर का इतिहास
550 साल पुराना मंदिर जानकारों की मानें तो यह मंदिर 500 साल पुराना है। रानी दुर्गावती से इस मंदिर का निर्माण सन् 1550-60 के दौरान करवाया था। स्थानीय लोगों का मानना है कि रानी मां शारदा की पूजा करने प्रतिदिन आया करती थीं। माना जाता है कि रानी दुर्गावती एक वीरांगना थी जो कभी किसी से भी नहीं डरा करती थीं। सन् 1556 के दौरान मालवा के अंतिम सुल्तान बाज बहादूर ने गोंडवाना साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया था। इस युद्ध में रानी ने अपने पराक्रम का प्रदर्शन कर बाजबहादूर और उसकी सेना के दांत खट्टे कर दिए थे। बाजबहादूर को अपनी जान बचाने के लिए रणभूमि से भागना पड़ा था। इस विजय के बाद पूरे गोंडवाना में खुशियां मनाई गई थी। और रानी ने प्रजा के साथ माता शारदा के मंदिर पर विजय ध्वज चढ़ाया था। तब से लेकर आज तक झंडा चढ़ाने की परंपरा निरंतर चली आ रही है।
जुड़ी है अनोखी मान्यताएं
यहां झंडा चढ़ाने से झमाझम होती है बारिश, अद्भुत है मां शारदा का मंदिर
भारत अपनी विविध संस्कृति के साथ-साथ अपने आश्चर्यों के लिए खूब जाना जाता है। अजीबोगरीब परंपराएं और मान्यताएं यहां गहराई से जुड़ी है। भारत का लंबा पौराणिक इतिहास ऐसे असंख्य रीति रिवाजों से भरा पड़ा है। यह विदित है कि भारत में लाखों देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। विभिन्न मान्यताओं और अवतारों में भगवान भारत की चारों दिशाओं में विराजमान हैं। मुख्यत : हिन्दू धर्म से जुड़े लोग कठोर धार्मिक कर्मकांडों का प्रयोग करते हैं, जीवन से जुड़ी समस्याओं से लेकर मोक्ष प्राप्ति की सभी प्रक्रिया इन्हीं जटील कर्मकांडों से होकर गुजरती है। आज हम आपको एक ऐसे ही अद्भुत मंदिर के विषय में बताने जा रहे हैं जिससे एक अनोखी परंपरा जुड़ी है। माना जाता है कि इस मंदिर में कभी झंडा चढ़ाने से जोरों की बारिश हुई थी।
स्थानीय जानकारों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण गोंडवाला साम्राज्य की वीरांगना दुर्गावती से ने सूखा पड़ने पर करवाया था। कहा जाता है कि किसी समय गोंडवाला साम्राज्य में भारी सूखा पड़ा था। सूखे से निजात पाने के लिए वीरांगना दुर्गावती ने माता शारदा का आह्वान किया था। जिसके बाद मां शारदा का मंदिर बनवाया गया। कहा जाता है दुर्गावती ने सावन के सोमवार में मंदिर पर झंडे अर्पित किए थे। झंडे चढ़ाने के बाद तेज बारिश शुरू हुई थी और सूखे से सब को निजात मिली।