श्री बड़ी खेरमाई मंदिर
बड़ी खेरमाई मंदिर ट्रस्ट
जबलपुर का सुविख्यात बड़ी खेरमाई मंदिर
आदिकाल से भारत में मात्र-शक्ति की उपासना अत्यंत श्रद्धा, विश्वास एवं अगाध आस्था के साथ होती रही है | श्रधालु पूजा स्थलों एवं सिद्ध पीठों में ठोकर साधनों एवं भिन्न पूजा पद्धतियों के द्वारा मनोवांछित फल पाते रहे है | मात्र देवी भाव, पितृ देवो भाव , आचार्य देवो भव आदि वेदमंत्रो में प्रथम स्थान माता का है | नवरात्र पर्वों में मात्र उपासना अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच जाती है, स्वयं भगवान् शिव ने कहा है की –
देवित्वम् भक्त सुलभे सर्व कार्य विधायनी |
कलो हि कार्य सिद्धमर्थ मुपायं ब्रूहि यत्नतः||
जबलपुर नगर में बड़ी खेरमाई की सुप्रसिद्ध सिद्धपीठ मात्र शक्ति की उपासना का प्राचीनतम केंद्र है | यहाँ पूजन-दर्शन-आराधना के लिए आने वाले श्रद्धालु आस्थावान भक्तों के हृदय में एक ही विश्वास जीवंत अवस्था में परिलक्षित होता है -
येस्तु भक्त्या स्मृता, नूनं, तेपां वृद्धिः प्रजायते |
ते त्वां, स्मरन्ति, देवेशि रक्षते, तान्न संशय: ||
“जिन्होंने भक्तिपूर्वक देवी का स्मरण किया है, उनका निश्चित ही अभ्युदय होता है| देवेश्वरी ! जो तुम्हारा चिंतन स्मरण करते है उनकी तुम निःसंदेह रखा करती हो |” बड़ी खेरमाई मंदिर नगर के ह्रदय स्थल में प्रतिष्ठापित सिद्ध स्थल है | इसकी स्थापना कई शताब्दी पूर्व हुई थी |
जब जबलपुर में ग्राम देवी के यज्ञ में पूजित श्री माता खेरमाई ग्राम की पूर्वी सीमा पर प्रक्रति की मनमोहक गोद में वनस्थली में मढ़िया में प्रतिष्ठापित थी | शाक्व और शैव सम्प्रदाय के अनुयायियों के लिए खेरमाई मंदिर और उसका परिसर एक सिद्ध स्थल के रूप में क्रमशः विकसित हो रहा था माता खेरमाई की प्रतिमा की स्थापना के पूर्व मढिया में चमत्कारी शिला का पूजन अर्चन होता है | जो आज भी माता खेरमाई की प्रतिमा के सिंहासन के नीचे अग्रभाग में होता है | खेरमाई के गर्भगृह में स्थापित माता की प्रतिमा के बांयी ओर संकटमोचन दक्षिणमुखी हनुमान तथा दांयी ओर तांत्रिक शक्ति के प्रतीक भैरव की प्रस्तर मूर्ति प्रस्थापित है | मंदिर के परकोटे की श्रद्धा भाव से परिक्रमा लगाना भक्तजन पूजन विधि का एक अंग मानते है, दुर्गा सप्तदशी में अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष प्रदान करने वाले सब मन्त्र 700 श्लोकों में है | इन में भगवती दुर्गा की नव शक्तियों की अराधना स्तुति है | नव शक्तियाँ है – शैलपुत्री, ब्रम्ह्चारिणी, चंद्रघण्टा, कूष्मांण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री ये देवी शक्तियां भक्तों की कामना पूर्ण कर बुद्धि, शक्ति तथा एश्वर्य प्रदान करती है |
सन 1993 में खेरमाई मंदिर ट्रस्ट द्वारा नव-शक्तियों की देवी प्रतिमाओं की स्थापना की गई है, जिनके पूजन एवं दर्शन से साधकों की आध्यात्मिक शांति और लौकिक एश्वर्य प्राप्त होता है | गर्भगृह के सामने मंदिर में एक बडा कक्ष है तथा उससे जुडा हुआ एक हवन कक्ष है | इस कक्ष में हवं पूजन कार्य निरंतर चलता रहता है तथा वैवाहिक कार्यक्रम भी संपन्न होते है | परकोटे के दाहिने भाग में दूल्हा देव और बांये भाग में ओरछा राज के पूर्व दीवान हरदौल की मूर्ति की श्रंखला है , इनमे प्रमुख हैं –
सिद्धिदाता गणेश, संकटमोचन हनुमान, माता बंजारी कालीमाई, भैरब, सिंहवाहिनी दुर्गा, चौंसठ योगिनी मंदिर आदि |
मंदिर के वास्तविक निर्मातों के नाम अतीत में ओझल हो गये हैं | परिसर में सैकड़ो वर्ष प्राचीन सिद्धिदाता पीपल का वृक्ष है, जिसकी परिक्रमा कर भक्तजन अपनी मनोकामना पूरी करते है तीन प्राचीन बावलियां भी जलपूर्ति का साधन बनी है | परिसर में तीन प्रवेश द्वार भी है | यह उल्लेखनीय है कि परिसर में शक्ति के प्रतीक देवी-देवताओं के मंदिर है पर राधाकृष्ण या रामसीता के मंदिर नही है क्यूंकि यहा शक्ति की पूजा प्राचीन काल से मान्यता रहा है यहाँ एक अखाडा भी है जिसे स्वर्गीय पं. गौरीशंकर मिश्र तत्कालीन नगर पालिक सदस्य ने सन 1936 में बनवाया था |