श्री नैना देवी जी हिमाचल प्रदेश : शक्ति पीठ

श्री नैना देवी जी हिमाचल प्रदेश : शक्ति पीठ 

श्री नैना देवी जी हिमाचल प्रदेश में सबसे उल्लेखनीय पूजा के स्थानों में से एक है. यह जिला बिलासपुर में स्थित है, यह 51 शक्ति पीठों में से एक है,जहां सती के अंग पृथ्वी पर गिरे थे| इस पवित्र स्थान पर तीर्थयात्रियों और भक्तों की भारी भीड़ विशेष रूप से श्रावण अष्टमी, चैत्र और अश्विन के नवरात्र के दौरान होती हैं|

विशेष मेला चैत्र, श्रवण और अश्विन नवरात्र के दौरान आयोजित किया जाता है, जो पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और देश के अन्य कोनों से आये हुए लाखों लोगों को आकर्षित करती है| अति प्राचीन काल के बाद से, सभी क्षेत्रों से लोग मां नैना देवी (देवी माँ) के दर्शन के लिए आते हैं| वे जय माता दी का जप करते हुए यह उम्मीद लेकर आते हैं कि उनकी मनोकामनाएं पूरी हों |

इतिहास और पुराण

माता श्री नैना देवी जी का इतिहास
श्री नैना देवी मंदिर 1177 मीटर की ऊंचाई पर जिला बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश मे स्थित है | कई पौराणिक कहानियां मंदिर की स्थापना के साथ जुडी हुई हैं |


एक पौराणिक कथा के अनुसार, देवी सती ने खुदको यज्ञ में जिंदा जला दिया, जिससे भगवान शिव व्यथित हो गए | उन्होंने सती के शव को कंधे पर उठाया और तांडव नृत्य शुरू कर दिया |इसने स्वर्ग में सभी देवताओं को भयभीत कर दिया कि भगवान शिव का यह रूप प्रलय ला सकता है| भगवान विष्णु से यह आग्रह किया कि अपने चक्र से सती के शरीर को 51 टुकड़ों में काट दें | श्री नैना देवी मंदिर वह जगह है जहां सती की आंखें गिरीं |

मंदिर से संबंधित एक अन्य कहानी नैना नाम के गुज्जर लड़के की है| एक बार वह अपने मवेशियों को चराने गया और देखा कि एक सफेद गाय अपने थनों से एक पत्थर पर दूध बरसा रही है| उसने अगले कई दिनों तक इसी बात को देखा| एक रात जब वह सो रहा था, उसने देवी माँ को सपने मे यह कहते हुए देखा कि वह पत्थर उनकी पिंडी है| नैना ने पूरी स्थिति और उसके सपने के बारे में राजा बीर चंद को बताया| जब राजा ने देखा कि यह वास्तव में हो रहा है, उसने उसी स्थान पर श्री नयना देवी नाम के मंदिर का निर्माण करवाया|

श्री नैना देवी मंदिर महिशपीठ नाम से भी प्रसिद्ध है क्योंकि यहाँ पर माँ श्री नयना देवी जी ने महिषासुर का वध किया था| किंवदंतियों के अनुसार, महिषासुर एक शक्तिशाली राक्षस था जिसे श्री ब्रह्मा द्वारा अमरता का वरदान प्राप्त था, लेकिन उस पर शर्त यह थी कि वह एक अविवाहित महिला द्वारा ही परास्त हो सकता था|इस वरदान के कारण, महिषासुर ने पृथ्वी और देवताओं पर आतंक मचाना शुरू कर दिया | राक्षस के साथ सामना करने के लिए सभी देवताओं ने अपनी शक्तियों को संयुक्त किया और एक देवी को बनाया जो उसे हरा सके| देवी को सभी देवताओं द्वारा अलग अलग प्रकार के हथियारों की भेंट प्राप्त हुई| महिषासुर देवी की असीम सुंदरता से मंत्रमुग्ध हो गया और उसने शादी का प्रस्ताव देवी के समक्ष रखा| देवी ने उसे कहा कि अगर वह उसे हरा देगा तो वह उससे शादी कर लेगी|लड़ाई के दौरान, देवी ने दानव को परास्त किया और उसकी दोनों ऑंखें निकाल दीं|

एक और कहानी सिख गुरु गोबिंद सिंह जी के साथ जुडी हुई है|जब उन्होंने मुगलों के खिलाफ अपनी सैन्य अभियान 1756 में छेड़ दिया, वह श्री नैना देवी गये और देवी का आशीर्वाद लेने के लिए एक महायज्ञ किया| आशीर्वाद मिलने के बाद, उन्होंने सफलतापूर्वक मुगलों को हरा दिया|


धार्मिक गतिविधियाँ
श्री नैना देवी जी की पूजा अर्चना एक दिन में 5 बार की जाती है| श्री माता जी को विभिन्न प्रकार के "भोग" पांच अलग अलग आरतियों में लगवाये जाते हैं|

हम घंटी क्यूँ बजाते हैं ?
घंटी बजने से "ओम" की शुभ ध्वनि पैदा होती है जोकि भगवान के सार्वभौमिक ध्वनि के साथ मेल खाती है| घंटी बजने के लाभ यह है कि यह सब अशुभ और ध्यान भंग करने वाली ध्वनियों को दूर रखती है ताकि आरती के दौरान भक्तों का ध्यान केंद्रित किया जा सके|

मंदिर स्थल पर महत्वपूर्ण स्थान
श्री नयना देवी जी मंदिर
श्री नयना देवी जी मंदिर संगमरमर से निर्मित है और देखने में बहुत शानदार लगता है| मंदिर का पहला द्वार चांदी से बना है जिस पर देवताओं की सुन्दर आकृतियाँ नक्काशित की गयी हैं| मंदिर का मुख्य दरवाजा भी चांदी से मढ़ा है और उस पर भगवान सूर्य और अन्य देवताओं की तस्वीरें है| मुख्य मंदिर में तीन पिंडियाँ हैं| जिनमे से एक मुख्य पिंडी माँ श्री नयना भगवती की और दो सुन्दर आंखे हैं| दाएं तरफ दूसरी पिंडी भी माँ की ऑंखें हैं और एसा माना जाता है कि इसकी स्थापना द्वापर युग में पांडवों के द्वारा की गयी थी| बाईं ओर भगवान गणेश की एक मूर्ती है| मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर शेर की दो मूर्तियाँ हैं|

गुफा
श्री नैना देवी जी की गुफा 70 फुट लम्बी है और मुख्य मंदिर के पास है| इससे पहले, लोग मंदिर तक पहुँचने के लिए खड़ी पथ का इस्तेमाल करते थे परन्तु अब केबल कार की सुविधा यात्रा में काफी मदद करती है|

रस्से का मार्ग

यह कोलकाता की एक कंपनी द्वारा स्थापित किया गया है और यह "रज्जू मार्ग" के नाम से भी जाना जाता है| मंदिर भवन तक पहुँचने के लिए यहाँ से केबल कार ली जा सकती है | यहाँ लगभग २० केबल कारें हैं और एक तरफ का संभावित किराया ३५ रूपये है|

कृपाली कुंड
जब देवी माँ ने दानव महिषासुर को हराया, तो उन्होंने उसकी दोनों आँखें निकाल दीं और उन्हें नैना देवी की पहाड़ियों के पीछे की ओर फेंक दिया| दोनों आँखें अलग-अलग स्थानों पर गिरीं और बाद में वहां दो बावड़ियाँ उत्पन्न हो गईं| ये दोनों बावड़ियाँ मंदिर से २ कि०मी० की दूरी पर हैं| इनमें से एक को 'बम बावड़ी" या "झीडा की बावड़ी" और अन्य को "भुभक बावड़ी" कहा जाता है| कृपाली कुंड के बारे में एक अन्य कथा यह है कि इसे भगवान ब्रह्मा द्वारा उस स्थान पर बनाया गया जहाँ महिषासुर की खोपड़ी गिरी थी| इसे ब्रह्म कृपाली कुंड भी कहा जाता है|

खप्पर महिषासुर
यह भवन के पास एक एक पवित्र स्थान है, जहाँ भक्त दर्शन करने से पहले स्नान के लिए जाते हैं|

काला जोहर
इस स्थान को 'चिक्षु कुंड’ भी कहा जाता है| महिषासुर के मुख्य कमांडर चिक्शुर की खोपड़ी इस स्थान पर गिरी थी| यह एक पवित्र स्थान है जहां लोग त्वचा की समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए,विशेष रूप से बच्चों को स्नान करवाने के लिए आते हैं|

कोलां वाला टोबा
यह जगह कमल खिलने के लिए लोकप्रिय है और श्री नैना देवी जी की यात्रा में पहला पड़ाव है| यहाँ पानी का एक पवित्र तालाब है जहाँ लोग दर्शन करने से पहले स्नान करते हैं| मंदिर न्यास द्वारा इस क्षेत्र के विकास के लिए 1.25 करोड़ रूपये निवेश किये गए हैं|