त्रिपुरी सुन्दरी मंदिर

त्रिपुरी सुन्दरी मंदिर

Tirpuri Sundri Mandir Jabalpur

विश्व प्रसिद्ध त्रिपुर सुंदरी मंदिर जबलपुर के 14 किमी दूर तेवर गांव के भेड़ाघाट रोड पर स्थित है. इस मंदिर में मां महाकाली, मां महालक्षी और मां सरस्वती की विशाल मूर्ति एक साथ विराजमान है| प्रमुख आकर्षण होने के अलावा इस मंदिर को काफी पवित्र माना जाता है और यह धार्मिक आस्था का महत्वपूर्ण केन्द्र है| हथियागढ़ का त्रिपुर सुन्दरी मन्दिर जबलपुर शहर से करीब 14 कि॰मी॰ कि दूरी पर भेड़ाघाट मार्ग पर "हथियागढ़" नाम के स्थान में स्थित है। मन्दिर के अन्दर माता महाकाली, माता महालक्ष्मी और माता सरस्वती की विशाल मुर्ति स्थापित है।

 त्रिपुर सुंदरी माता मंदिर : यहां नारियल बांधने से पूरी होती हैं मनोकामना

भक्त यहां अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं और माता उनकी मनोकामना को पूरा करने में देरी नहीं करतीं। मंदिर परिसर में चारों ओर नारियल बंधे हुए हैं। भक्तों के अनुसार माता सभी भक्तों की मनोकामना पूरी करती हैं। इसके लिए भक्त यहां नारियल बांधते हैं और मनोकामना पूरी होने के बाद मंदिर में आकर नारियल भेंट चढ़ाते हैं। वैसे तो यहां सालभर भक्तों का आना होता है, लेकिन नवरात्र में हजारों की तादाद में दूर-दूर से भक्त यहां पहुंचते हैं।


11 वीं शताब्दी का प्राचीन मंदिर 

11वीं शताब्दी में बने इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां जो मूर्ति है वह धरती के अंदर से प्रकट हुई थी| कहा जाता रहा है कि राजा "करन", जो हथियागढ़ के राजा थे, वे देवी के सामने खौलते हुये तेल के कडाहे में स्वयं को समर्पित कर देते थे और देवी प्रसन्न होकर उन्हें (राजा को) उनके वजन के बराबर सोना आशीर्वाद के रूप में देती थीं। मां त्रिपुर सुंदरी जो सदियों तक तेवर सहित आसपास इलाके में बड़ी खेरमाई या हथियागढ़ वाली खेरदाई के नाम से जानी जाती रही हैं और अब भी यहां के उम्रदराज लोग इसी नाम से संबोधित करते हैं। मां की अलौकिक शक्ति एवं चमत्कारों की यहां अनेक कहानियां एवं किवदंतियां आज भी सुनी जा सकती हैं। यहां पर आज भी मनोतियाँ मांगी जाती हैं और ऐसा देखा जा सकता है कि यहां मनोतियाँ पूर्ण होने के उपरांत भंडारे, विशेष पूजन-अर्चन तथा चढ़ावा का सिलसिला चलता ही रहता है। आस्था और श्रद्धा के इस स्थल में सदैव चहल पहल रहती है। लोग दूर-दूर से माँ के दर्शनार्थ दौड़े चले आते हैं। मां की चमत्कारी शक्तियों की अनेक कथाएं हैं। वे इस पहाड़ी स्थान को छोड़कर आबादी वाले क्षेत्र में आना ही नहीं चाहती थीं। सुना गया है कि एक बार ग्रामीण लोग माता जी को बैलगाड़ी में रखकर तेवर गांव में छोटी खेरमाई मंदिर ले कर आ गए और वहां रात भर भजन कीर्तन करते रहे। लोग जब दूसरे दिन सुबह स्नान-ध्यान करने और मां के पूजन की तैयारी करने अपने घर गए। इसके बाद जब वापस मंदिर आए तो माँ वहां से अंतर्ध्यान हो चुकी थीं। लोग घबरा गए। बाद में पता चला कि मां अपने पुराने स्थान पर स्वयं पहुंच गई हैं, ऐसी हैं तेवर की माँ त्रिपुरसुंदरी। एक कथा और सुनने को मिलती है कि अंग्रेजों के जमाने में कुछ बाहरी अनजान लोग मां को ट्रक में रख कर ले जा रहे थे परंतु कुछ ही दूरी पर ट्रक के सभी लोगों को नींद सताने लगी तब सभी लोग ट्रक को खड़ा कर सो गए और जब नींद खुली तो ट्रक में देवी मां नहीं थी। फिर ज्ञात हुआ कि वे अपने स्थान पर विराजमान हैं। जैसा मैं स्वयं जानता हूँ कि पूर्व में मां केवल एक शिलाखंड के सहारे पश्चिम दिशा की ओर मुंह किए अधलेटी अवस्था में थी। इसी तारतम्य में एक अन्य बात आज भी बताई जाती है कि त्रिपुरी क्षेत्र के ऐतिहासिक-उत्खनन के समय किसी उत्खनन अधिकारी ने मां को जंजीरों के सहारे खड़ा करने की कोशिश की थी तो उस अधिकारी को स्वप्न आया कि मुझे खड़ा मत करो परंतु वह नहीं माना। उसने जब मां को जंजीरों के सहारे खड़ा किया तभी अधिकारी के घर से उसके अच्छे-भले और स्वस्थ पुत्र की अचानक तबियत बिगड़ गई। बाद में उसने देवी मां को पूर्व स्थिति में रख कर उनसे क्षमा याचना और पूजन अर्चन किया तब जाकर उसके पुत्र को स्वास्थ्य लाभ हुआ। इनके अतिरिक्त इस सम्बन्ध में और भी कहानियां प्रचलित हैं, जिनमें बताया जाता है कि दानी राजा कर्ण ने पूजा के बाद सवा पहर तक सोना बरसाया था और यह भी कहा जाता है कि एक बार खौलते तेल की कढ़ाई में राजा ने अपना मस्तक काटकर जब देवी माँ को चढ़ाया तब माँ ने स्वयं प्रकट होकर भक्त को पुनर्जीवित किया तथा दर्शन दिए।

 ये है मान्यता

मां त्रिपुर सुंदरी के दरबार की प्रमुख मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु यहां पर सच्चे मन से आता है और यहां पर मन्नत का नारियल बांधकर जाता है तो उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। मां त्रिपुर सुंदरी शीघ्र ही उसकी अर्जी पर सुनवाई करती हैं। अब मंदिर का प्रबंध प्रशासन के जिम्मे है। मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां नारियल बांधने से देवी से की गई मन्नत पूरी होती है। परिणाम स्वरूप मंदिर का समूचा परिसर लाखों नारियल बंधे हुए है। त्रिपुर सुंदरी की प्रतिमा मानी जाती है। त्रिपुर सुंदरी की प्रतिमा स्थापित होने के पूर्व से ही इस मंदिर में सैकड़ो साल से आसपास के ग्रामीण हथियागढ़ वाली खेरदाई के नाम से मंदिर में शक्ति पूजन करते आ रहे है।

‘मां त्रिपुर सुंदरी’ मोक्ष प्रदायनी


मां भगवति अनेक रूपों में सर्वत्र व्याप्त है। समस्त जड संसार देवी के प्रभाव से सजीव एवं चलायमान है। शक्ति के अभाव में तो शिव भी शव के समान है। देवी के रूपों में से एक जगत प्रसिद्ध देवी त्रिपुर सुन्दरी हैं। देवी दस महाविद्धाओं में तीसरे नम्बर की देवी है, तीनों लोकों में सर्वाधिक सुंदर व सभी कर्मो में शीघ्र फलदेने वाली है त्रिपुर सुंदरी। सोलह कलाओं से युक्त मां सोलह वर्ष की कन्या के समान, हजारों सूर्य का तेज समाहित किये हुये है। माता का दूसरा नाम षोडसी देवी भी है। देवी की अराधना समस्त प्रकार के ऐश्वर्य एवं भोग प्रदान करने वाला है।

‘मां त्रिपुर सुंदरी’ महाकल्याण देवी मां

देवी यौवन और आकर्षण की देवी है, जिनके पूजन द्वारा आकर्षण व सौंदर्यता प्राप्त होती है। दाम्पत्य जीवन में कलह, किसी प्रिय जन का रूठना, सम्मान व पद प्राप्त करना या किसी को भी सम्मोहित करना आदि समस्त प्रकार के कार्य देवी की साधना से तुरन्त सफल होते है। देवी की उपासना भोग और मोक्ष प्रदायक है।

षोडसी माता का स्वरूप

माता के चार हाथ हैं। चारों हाथों में पाश, अंकुश, धनुष और बाण सुशोभित है। मां का आश्रय लेने वाला कभी निराश नही होता, वरदायी माता का हृदय सौम्यता एवं दया से पूर्ण है। मां की महिमा वर्णन करना सम्भव नही है। संसार संसार के समस्त तन्त्र-मंत्र व तांत्रिक और सिद्ध गण बिना माता के आर्शिवाद के पूर्णता प्राप्त नही करते। माता के प्रसन्न होने पर मनवान्छित फल प्राप्त होता है। पांच मुख होने से तंत्र शास्त्र में इन्हे पंचवक्त्र भी कहा जाता है।

 


शिवजी ने बताया था त्रिपुर सुंदरी का रहस्य….

इस अत्यन्त गोपनीय रहस्य को पार्वती देवी के अनुरोध करने पर शिव ने बताया। ‘‘भैरवयामल तंत्र और शक्ति लहरी’’ में माता की साधना का प्रयोग विस्तृत रूप में प्राप्त होता है। देवी की कृपा से साधक भोग व मोक्ष दोनों प्राप्त करते हैं।

ध्यान:-

बालार्क युत तैजसं त्रिनयनां रक्ताम्बरोल्लसिनीं।
नानालंकृतिराजमानवपुषं बालोडुराट शेखराम्।।

हस्तैरिक्षु धनुः सृणि सुमशरं पाशं मुदा विभ्रतीं।
श्री चक्र स्थितःसुन्दरीं त्रिजगतधारभूतां भजे।।

षोडशी त्रिपुर सुंदरी मंत्र-

“ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं। “