माला देवी महालक्ष्मी का अवतार

माला देवी महालक्ष्मी का अवतार

 

महारानी रानीदुर्गावती के वंशजों ने की स्थापना

जबलपुर नवरात्री। विश्व आचार्य और चमत्कार से भरा पड़ा है। मन में सवाल भी उठते हैं कि यह कैसे हो सकता है, लेकिन इसका जवाब कभी प्राप्त नहीं पाता और होता है तो उसमें भी संशय बना रहता है। ऐसे ही आश्चर्य जनक स्थानों में से से एक एक जबलपुर शहर है, यहाँ गढ़ा, जबलपुर में स्थित माता माला देवीका प्राचीनतम मंदिर। इस मंदिर में स्थापित देवी की प्रतिमा दिन में तीन बार अपने आप रंग बदलती है। इसका रहस्य आज तक सुलझ नहीं पाया| पुरातत्व विद इसे पत्थर की विशेषता से जोड़कर देखते हैं, वहीं श्रद्धालु इसे देवी माँ का प्रताप और चमत्कार मानते हैं। नवरात्री में पूजन के लिए यहां कतार लगती है।

सघन बस्ती में विराजी है माँ मालादेवी

गढ़ा बाजार से धन्वन्तरी नगर जाने वाले मार्ग पर पुरवा चुंगी चौकी, पुरवा झंडा चौक के समीप बखरी क्षेत्र में यह माता का यह मंदिर स्थित है| बुजुर्गजन बताते हैं कि तीन दशक पहले तक मंदिर के आसपास काफी खुली जगह और मैदान था। अनदेखी के कारण अतिक्रमण बढ़ता गया और माता का यह मंदिर बस्ती के अंदर आ गया। यहां तक जाने के लिए एक सकरा सा रास्ता ही शेष बचा है। वैसे तो यह प्रतिमा पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है, लेकिन सभी कुछ कागजों पर चल रहा है, इसकी देख रेख कोई नहीं करता।

महालक्ष्मी का अवतार "मालादेवी माँ"

इतिहासविद राजकुमार गुप्ताजी ने बताया कि माला देवी, रानी दुर्गावती के वंशजों की कुलदेवी हैं। रानी स्वयं रोज यहां पूजन करने के लिए आती थीं। माला देवी को महालक्ष्मी देवी का ही एक रूप माना गया है। मान्यता है कि मालादेवी के पूजन और आराधना से सुख, समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है। रानी दुर्गावती भी इस सत्य को जानती थीं। उस दौर में भी नवरात्र पर यहां विशेष पूजन होता था।

रहस्य बनी प्रतिमा

मूर्ति के रंग बदलने का रहस्य आज भी पहेली बना हुआ है। दूर दूर से लोग इस प्रतिमा को देखने के लिए आते हैं। गढ़ा बाजार निवासी मनीष शर्मा का कहना है कि सूर्योदय के समय माला देवी की प्रतिमा में लाल रंग की आभा दिखाई देती है। दोपहर में मूर्ति का रंग थोड़ा श्याममल हो जाता है। शाम को प्रतिमा पीली नजर आती है। शर्मा व स्थानीय रूपकिशोर प्यासी का कहना है कि लोग इसे चमत्कार मानते हैं। पुरातत्व विद अरुण शुक्ल का मानना है कि प्रतिमा एक विशेष प्रकार के पत्थर से बनी है। पत्थर के गुण की वजह से ही रंग बदला दिखाई देता है। इस पर रिसर्च भी चल रही है, लेकिन इसमें अभी कोई सफलता प्राप्त नहीं हुई है ।

कल्चुरी (गोंड़काल के पहले) वंश से संबंध

इतिहाकार बताते हँ कि माला देवी की प्रतिमा कल्चुरिकाल (गोंड़काल के पहले) में बनी है। उस समय इसी तरह की प्रतिमाएं बनाई जाती थीं। कल्चुरी वंश वास्तव में है| क्षत्रिय वंश कहलाता था। इनकी राजधानी त्रिपुरी यानी जबलपुर के समीप स्थित तेवर थी। कल्चुरी वंश के बाद गोंडवाना काल आया। गोंड शासकों ने भी इस प्रतिमा की गरिमा का ध्यान रखा और कुलदेवी के रूप में इनका पूजन किया।

भक्तों की लगती है कतार

चैत्र नवरात्र पर मालादेवी मंदिर में भक्तों की कतार लग रही है। सुबह से ही जल चढ़ाने का क्रम शुरू हो जाता है, जो पूजन वंदन के साथ देर रात तक चलता है। बताया गया है यहां सूरजताल के समीप गोंडवाना काल की और भी धरोहरें मौजूद हैं। इनका अस्तित्व भी संकट में है। गढ़ा निवासी अजय तिवारी व अशोक मनोध्याजी का कहना है कि पुरातत्व विभाग के अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों को इन धरोहरों के संरक्षण की दिशा में सक्रिय कदम उठान चाहिए।

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