550 वर्ष का एतिहासिक चौथ माता का मंदिर राजस्थान में

550 वर्ष का एतिहासिक चौथ माता का मंदिर राजस्थान में

 

550 वर्ष का एतिहासिक चौथ माता का मंदिर राजस्थान में

जबलपुर नवरात्री  | भारत के राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर से 22 कि.मी. कि दूरी पर बसा चौथ का बरवाडा गाँव में एतिहासिक चौथ माता का मन्दिर चमत्कारी मन्दिर है। चौथ माता मन्दिर कि स्थापना - शिव भक्त राजा बीजल के पराक्रमी पुत्र महाराज भीम सिंह जी ने लगभग 550 वर्ष पूर्व संवत 1451 में बरवाडा से 15 कि.मी. दक्षिण की तरफ स्थित पचाला नामक स्थान से श्री चौथ माताजी की प्रतिमा लाकर पूर्ण प्राण प्रतिष्ठा के साथ स्थापना कर बरवाडा के पास स्थित अरावली श्रृंखला की एक ऊॅची पहाडी पर एक छोटा सा मन्दिर भी बनवाया । बरवाडा में चौथ माताजी की प्रतिमा स्थापित होने के बाद इस गाँव का नाम चौथ का बरवाडा हो गया। महाराज श्री भीम सिंह जी ने अपने पिता कि स्मृति में गाँव के बाहर एक विशाल छतरी का निर्माण करवाकर भगवान् शंकर के शिवलिंग की स्थापना कर निकट ही एक तालाब का निर्माण करवाया| छतरी आज भी बीजल की छतरी तथा तालाब माताजी का तालाब के नाम से प्रसिद्व है| इस मंदिर में चौथ माताजी के साथ गणेशजी की स्थापित है। माताजी के मन्दिर में भैरव जी महाराज भी है। चौथ का बरवाडा में प्रतिवर्ष माह सुदी चौथ से अष्ट्मी तक माताजी का विशाल मेला लगता है। जिसमें दूर -दूर से लाखों यात्री आते हैं| चौथ माताजी के मन्दिर में सैकड़ों वर्षों से घी की अखण्ड ज्योति जल रही है।

चौथ माता आद्शक्ति माता पार्वती का अवतार

पं नरेन्द्र मिश्र ने बताया कि, पुराणों के आनुसार माता पार्वती ( गौरी माता ) का एक रूप चौथ माता है। यह सुहागनों के लिए एक शक्ति पीठ की संज्ञा देना अतिशियोक्ति न होगी| मंदिरों में चौथ माता के साथ विघ्न विनाशक भगवान् श्रीगणेश की प्रतिमा स्थापित की जाती है। करवा चौथ माता सुहागन स्त्रियों के सुहाग की रक्षा करती हैं। उनके दाम्पत्य जीवन में प्रेम और विश्वास की स्थापना करती हैं। सुहागिनों को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद माता की कृपा से मिलता है।

कौन  थी करवा ? कैसे की इसने अपने पति के प्राणों की रक्षा 

इतिहासविदों के अनुसार पुराणों में दिया है कि - प्राचीन समय में करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री थी। वह अपने पति के साथ नदी किनारे बसे एक छोटे से गांव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया। नदी में नहाते समय एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया और निगलने के लिए उसे अपनी तरफ खींचने लगा। इस पर वह अपनी पत्नी का नाम लेकर "करवा करवा" चिल्लाकर अपनी पत्नी को सहायता के लिए पुकारने लगा। करवा पतिव्रता स्त्री थी और उसके सतीत्व में बहुत शक्ति था। जैसे ही उसने अपने पति की आवाज सुनी, करवा दौड़कर नदी पहुंची। उसने अपने पति का पैर मगर के मुंह में देखा उसने अपनी सूती साड़ी से एक धागा निकाला और अपने तपोबल से आन देखर उस मगरमच्छ को कच्चे धागे से ही बांध दिया।
मगरमच्छ को उस सूत के धागे से बांधने के बाद करवा यमराज के पास पहुंची। यमराज उस समय चित्रगुप्त के खाते देख रहे थे। करवा अपने हाथ में लाई हुई सात सीकों को झाड़ने लगी। इससे यमराज के खाते इधर-उधर बिखर गए। उनका ध्यान करवा पर पड़ा। यमराज ने रुष्ट होते हुए पूछा| हे ! देवी तुम क्या चाहती हो ? इस पर करवा ने कहा कि हे ! यमराज एक मगरमच्छ ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है, आप अपनी शक्ति से उस मगर को मृत्युदंड देखकर अपने लोक नरक में ले जाइये। इस पर यमराज ने कहा कि मगरमच्छ की आयु अभी शेष है, समय से पहले मैं उसे मृत्युदंड नहीं दे सकता। इस पर करवा ने कहा, यदि आप मगरमच्छ को मारकर, मेरे पति को चिरायु होने का वरदान नहीं देगें तो मैं अपने तपोबल से आपको नष्ट होने का श्राप दे दूंगी।
करवा की बात सुनकर चित्रगुप्त सोच में पड़ गए। क्योंकि वह करवा के सतीत्व के कारण न तो उसे श्राप दे सकते थे और न ही उसके वचन को अनदेखा कर सकते थे। तब उन्होंने मगरमच्छ को असमय ही यमलोक भेज दिया और करवा के पति को लंबी आयु का वरदान दिया। साथ ही भगवान् चित्रगुप्त ने करवा को आशीर्वाद दिया कि तुम्हारा जीवन सुख और समृद्धि से भरपूर होगा। हे करवा! आज तुमने अपने पति के जीवन की रक्षा अपने तपोबल से की है, मैं वरदान देता हूं कि इस तिथि पर जो भी महिला पूर्ण विश्वास और आस्था से व्रत और पूजन करेगी, मैं उसके सौभाग्य की रक्षा करूंगा।
करवा के तप के कारण भगवान चित्रगुप्त ने सौभाग्य की रक्षा का आशीर्वाद दिया और उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी (चौथ) तिथि होने कारण, करवा और चौथ के मिलने से इस व्रत का नाम करवा चौथ पड़ा। इस तरह मां करवा वह पहली महिला हैं, जिन्होंने सुहाग की रक्षा के इस व्रत को न केवल पहली बार किया बल्कि इसकी शुरुआत भी की। इस व्रत को करने के बाद शाम को पूजा करते समय माता करवा की यह कथा पढ़ें। साथ ही माता करवा से विनती करें कि हे माँ करवा ! जिस प्रकार से आपने अपने सुहाग और सौभाग्य की रक्षा की, उसी तरह हमारे सुहाग की रक्षा करना। भगवान चित्रगुप्त और यमराज से विनती करें कि हे प्रभु जो वचन आपने माता करवा को दिया था, उसका निर्वाह करते हुए हमारे व्रत को स्वीकार कर हमारे सौभाग्य की रक्षा करना।

जबलपुर नवरात्री 

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