जानें, माता महाकाली के उत्पन्न होने की कथा

जानें, माता महाकाली के उत्पन्न होने की कथा

 

जानें, माँ काली के उत्प न्नअ होने की कथा...

पुराणों के अनुसार माँ भगवती ने दुष्टों  महा असुरों का अंत करने के लिए विकराल रूप धारण कर लिया था जिन्हेंे महाकाली के नाम से जाना जाता है| इनकी आराधना से मनुष्य के सभी दुःख, भय दूर हो जाते हैं|

माँ दुर्गा का विकराल रूप हैं महाकाली और यह बात सब जानते हैं, कि दुष्टस असुरों का संहार करने के लिए माँ ने यह रूप धारण किया था. पुराणों में माँ के इस रूप को धारण करने के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं और उनका व्यासखान भी वहां मिलता है.

आइए जानें माता महाकाली के इस महा भयंकर रूप के पीछे की कथा:

एक बार दारुक नामक असुर ने ब्रह्म देव को प्रसन्न किया| उनके द्वारा दिए गए वरदान से वह देवों और ऋषि-मुनियों को प्रलय की अग्नि के समान दुःख देने लगा| उसने सभी धर्मिक अनुष्ठान बंद करा दिए और स्वर्गलोक में अपना शासन स्थापित कर लिया| सभी देवता, ब्रह्मा और भगवान् विष्णु के धाम पहुंचे| ब्रह्माजी ने बताया की यह दुष्ट केवल स्त्री दवारा मारा जायेगा. तब ब्रह्मा, विष्णु सहित सभी देव स्त्री रूप धर दुष्ट दारुक से लड़ने गए| परतु वह दैत्य अत्यंत बलशाली था, उसने उन सभी को परास्त कर भगा दिया.

ब्रह्मा, विष्णु समेत सभी देव भगवान शिव के धाम कैलाश पर्वत पहुंचे तथा उन्हें दैत्य दारुक के विषय में बताया भगवन शिव को बताया| भगवान शिव ने उनकी बात सुन माँ पार्वती की ओर देखा और कहा हे कल्याणी जगत जननी माता लोक कल्याण के हित के लिए और दुष्ट दारुक के वध के लिए में तुमसे प्रार्थना करता हूँ| यह सुन माता पार्वती मुस्कराई और अपने एक अंश को भगवान शिव में प्रवेश कराया| जिसे माँ भगवती के माया से इन्द्र आदि देवता और ब्रह्मा नहीं देख पाए उन्होंने देवी को शिव के पास बैठे देखा.

माँ भगवती का वह अंश भगवान शिव के शरीर में प्रवेश कर उनके कंठ में स्थित विष से अपना आकार धारण करने लगा| विष के प्रभाव से वह काले वर्ण में परिवर्तित हुआ| भगवान शिव ने उस अंश को अपने भीतर महसूस कर अपना तीसरा नेत्र खोला| उनके नेत्र द्वारा भयंकर-विकराल रूपी काले वर्ण वाली माँ काली उत्तपन हुई| माँ काली के ललाट में तीसरा नेत्र और चन्द्र रेखा थी| कंठ में कराल विष का चिन्ह था और हाथ में त्रिशूल, नर मुंडो की माला से वह सुशोभित थी| माँ काली के भयंकर व विशाल रूप को देख देवता व सिद्ध लोग भागने लगे|

माँ काली के केवल हुंकार मात्र से दारुक समेत, सभी असुर सेना जल कर भस्म हो गई| माँ के क्रोध की ज्वाला से सम्पूर्ण लोक जलने लगा| उनके क्रोध से संसार को जलते देख भगवान शिव ने एक बालक का रूप धारण किया| शिव श्मशान में पहुंचे और वहां लेट कर रोने लगे. जब मां काली ने शिवरूपी उस बालक को देखा तो वह उनके उस रूप से मोहित हो गई. वातसल्य भाव से उन्होंने शिव को अपने हृदय से लगा लिया तथा अपने स्तनों से उन्हें दूध पिलाने लगी| भगवान शिव ने दूध के साथ ही उनके क्रोध का भी पान कर लिया| उनके उस क्रोध से आठ मूर्ति हुई जो क्षेत्रपाल कहलाई|

शिवजी द्वारा मां काली का क्रोध पी जाने के कारण वह मूर्छित हो गई| देवी को होश में लाने के लिए शिवजी ने शिव तांडव किया| होश में आने पर माँ काली ने जब शिव को नृत्य करते देखा तो वे भी नृत्य करने लगी जिस कारण उन्हें योगिनी भी कहा गया|

कार्तिक मास की अमावस्या को प्रकट हुई महाकाली

काली पूजा, महानिशा पूजा और श्यामा पूजा पूर्वी भारत, मुख्यतः बंगाल, में प्रचलित एक हिंदू पर्व है। हिंदू देवीकाली को समर्पित यह पर्व कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है, अर्थात उसी दिन जिस दिन पूरे भारत में दीपावली का पर्व और लक्ष्मी पूजा मनायी जाती है। पुराणों के अनुसार इसी अमावस्या की काली रात्रि में माता महाकाली दुष्टों के संघार के लिए ६४,००० योगिनियों के साथ प्रकट हुई थीं।

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