तुलसी विवाह: ये है देवउठनी ग्यारस या देव प्रबोधनी एकादशी

तुलसी विवाह: ये है देवउठनी ग्यारस या देव प्रबोधनी एकादशी

 

तुलसी विवाह, देवउठनी ग्यारस, देव प्रबोधनी एकादशी

कार्तिक मास का हिन्दू धर्म में बड़ा महत्व है| इस मास में कई बड़े त्योहारों को मनाया जाता है| कार्तिक मास पञ्च दिवसीय त्यौहार धनतेरस, चित्रगुप्त पूजा, नरक चतुर्दशी, दिवाली, गोवर्धन पूजा, भाई दूज को मनाया जाता. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की ग्यारस को दिन देवउठनी ग्यारस के नाम से जाना जाता है| हिंदू परंपरा के अनुसार इस दिन से सभी शुभ कार्य, शादी, मुंडन, नामकरण संस्कार जैसे कार्य करना बेहद शुभ होता है| इस एकादशी को प्रबोधनी ग्यारस भी कहा जाता है. ये एकादशी दिवाली के 11 दिन बाद मनाई जाती है|

देवउठनी ग्यारस का अर्थात् देवों का उठना, ये एकादशी साल भर की एकादशी में से इसीलिए सबसे महत्वपूर्ण होती है क्योंकि इस दिन से चार महीने पहले भगवान विष्णु व अन्य देवता गण क्षीरसागर में जाकर सो जाते हैं| इसी वजह से देव शयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी के बीच में कोई भी शुभ कार्य नहीं होता है| देवउठनी एकादशी से देव उठते हैं| साथ ही जब इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के बाद सो कर जागे थे|

तुलसी विवाह: कथा वृंदा की 

प्राचीन काल में जालंधर नामक राक्षस ने चारों ओर बड़ा उत्पात मचा रखा था। वह बड़ा वीर तथा पराक्रमी था। उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी वृंदा का पवित्र पतिव्रता धर्म। उसी के प्रभाव से वह विजयी बना हुआ था। चूकी जालंधर भगवान शिव के अंश से उत्पन्न शिवजी का चौथा पुत्र था और वह राक्षस के बह्काबे में आकर ईर्षावश पिता का ही परम शत्रु बन गया| भगवान शिव की दिव्या उर्जाओं का वास था उसमें इसकी कारण उसका अंत भगवान शिव सिवाय कोई नहीं कर सकता था| जालंधर के उपद्रवों से परेशान देवगण भगवान विष्णु के पास गए तथा आताताई राक्षस जालंधर के विनाश के लिए चतुर्भुजं भगवान विष्णु से प्रार्थना की।
उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का निश्चय किया, क्योंकि इसके अलावा जालंधर के अंत का कोई मार्ग न था। उन्होंने जालंधर का रूप धारण कर छल से वृंदा का स्पर्श किया। वृंदा का पति जालंधर, देवताओं से पराक्रम से युद्ध कर रहा था लेकिन वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही मारा गया। जैसे ही वृंदा का सतीत्व भंग हुआ, भगवान शिव के त्रिशूल ने जालंधर के मस्तिषिक को धड़ से अलग कर दिया और जालंधर का सिर जालंधर के घर के आंगन में आ गिरा। जब वृंदा ने यह देखा तो क्रोधित होकर जानना चाहा कि फिर जिसे उसने स्पर्श किया वह कौन है। सामने साक्षात विष्णु जी खड़े थे। उसने भगवान विष्णु को श्राप तुमने छल से मुझे पति वियोग दिया है, उसी प्रकार तुम्हारी पत्नी का भी छलपूर्वक हरण होगा और स्त्री वियोग सहने के लिए तुम भी मृत्यु लोक में जन्म लोगे।" यह कहकर वृंदा अपने पति के साथ सती हो गई। वृंदा के श्राप से ही प्रभु श्रीराम ने अयोध्या में जन्म लिया और उन्हें सीता वियोग सहना पड़ा़।

जिस जगह वृंदा सती हुई वहां तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ।

एक अन्य कथा में आरंभ यथावत है लेकिन इस कथा में वृंदा ने विष्णु जी को यह शाप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। अत: तुम पत्थर के बनोगे। यह पत्थर शालिग्राम कहलाया। विष्णुजी ने कहा, 'हे वृंदा! मैं तुम्हारे सतीत्व का आदर करता हूं लेकिन तुम तुलसी बनकर सदा मेरे साथ रहोगी। जो मनुष्य कार्तिक एकादशी के दिन तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, उसकी हर मनोकामना पूरी होगी।' बिना तुलसी दल के शालिग्राम या विष्णु जी की पूजा अधूरी मानी जाती है। शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का ही प्रतीकात्मक विवाह माना जाता है।

पूजा विधि

इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना होता है. इस दिन व्रत करने की परंपरा है| स्नान करने के बाद सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया जाता है| वैसे तो इस दिन नदी में स्नान करने को बेहद शुभ माना जाता है| ये व्रत एकादशी को शुरू होता है और द्वादश को खोला जाता है| इस दिन तुलसी की पूजा और पूरी विधि विधान के साथ विष्णु जी के रूप शालिग्राम जी से उनका विवाह संपन्न करवाया जाता है| इस दिन तुलसी की पूजा में लोग कन्यादान करते हैं| हिंदू धर्म के अनुसार संसार में यदि सबसे बड़ा कन्यादान है तो वह है कन्यदान| इसीलिए इस दिन लोगों को कन्यादान करने का सौभाग्य भी प्राप्त होता है|

पं.नरेन्द्र मिश्रा
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