चैत्र नवरात्रि – गुडी पड़वा - चेट्रीचेंड्रा  2019, Jabalpur Navratri

चैत्र नवरात्रि – गुडी पड़वा - चेट्रीचेंड्रा 2019, Jabalpur Navratri

 

चैत्र नवरात्रि – गुडी पड़वा - 2019 - (Chaitra Navaratri 2019)

वर्ष 2019 में चैत्र नवरात्र 6 अप्रैल, शनिवार से शुरु होकर 14 अप्रैल, रविवार को  समापन होगा।


सर्वमंगल मांगल्ये
शिवे सर्वार्थसाधिके
शरण्ये त्रयम्बके गौरी
नारायणी नमोस्तुते !!

चैत्र नवरात्रि क्यों मनाया जाता है? 

एक वर्ष दो प्रमुख नवरात्रियां मनायी जाती है, शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि। नवरात्रि के इस पर्व को पूरे भारत भर में बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन को लेकर बहुत सारी मान्यताएं हैं।

एक प्रमुख मान्यता के अनुसार चैत्र नवरात्रि के पहले दिन ही माँ दुर्गा प्रकट हुई थीं और उनके आदेश पर ही भगवान ब्रम्हा ने संसार की रचना की थी। यहीं कारण है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानि चैत्र नवरात्रि के पहले दिन हिंदू नववर्ष भी मनाया जाता है। इसके अलावा पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान श्रीराम का जन्म भी चैत्र नवरात्रि की नवमी तिथि में ही हुआ था, इस उत्सव को रामनवमी के रूप में मनाया जाता है।

माँ दुर्गा को आदि शक्ति के नाम से भी जाना जाता है और हिंदू धर्म में उन्हें सबसे प्राचीन दैवीय शक्ति का स्त्रोत माना है, क्योंकि माँ दुर्गा का जन्म बुराई का नाश करने के लिए हुआ था। इसलिए चैत्र माह में उनकी पूजा-अर्चना करने के कारण हमारे अंदर नकारात्मक विचारों का अंत होता है और सकारात्मकता का विकास होता है। यहीं कारण है कि चैत्र नवरात्रि का यह महत्वपूर्ण पर्व पूरे भारत भर में इतने भव्य तरीके से मनाया जाता है।

चैत्र नवरात्रि कैसे मनाया जाता है – सिंधी धर्मं का नववर्ष  

माँ दुर्गा को समर्पित चैत्र नवरात्रि के इस पर्व को मनाने का एक अलग ही तरीका है, जो इसे अन्य त्योंहारों से भिन्न बनाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, हिमांचल प्रदेश, हरियाणा जैसे भारत के उत्तरी राज्यों में यह पर्व काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इसके साथ ही चैत्र नवरात्रि के समय से ही महाराष्ट्र में गुड़ी पाड़वा पर्व की भी शुरुआत होती है।

चैत्र नवरात्रि के पहले दिन को प्रतिपदा भी कहा जाता है, इस दिन से माँ दुर्गा के मंदिरों में मेलो तथा विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। चैत्र नवरात्रि के शुरुआत से ही दुर्गा मंदिरों में भारी संख्या में भक्तजन दर्शन के लिए आते हैं तथा शक्तिपीठों और प्रसिद्ध देवी मंदिरों में तो यह संख्या लाखों तक पहुंच जाती है।

इस दौरान कई भक्तों द्वारा चैत्र नवरात्रि के पहले तथा आखरी दिन व्रत रखा जाता है, वहीं कई भक्तों द्वारा नौ दिनों के कठिन व्रत का भी पालन किया जाता है। नवरात्रि पूजन के लिए हर क्षेत्रों में अलग-अलग विधा और तरीके प्रचलित है परन्तु इसकी कुछ प्रथाएं ऐसी है। जिनका पूरे भारत भर में समान रुप से पालन किया जाता है।

सिंधी धर्मं का नववर्ष – चेट्री चेंड्रा – झुलेलाल जन्मोत्सव

चेट्रीचेंड्रा सिंधी लोगों का एक सबसे लोकप्रिय त्यौहार है जिसे सिंधी नववर्ष के रूप में भी मनाया जाता है। चेटी चंड हिंदू कैलेंडर के अनुसार नवरात्रि के प्रथम दिन अर्थात चैत्र शुक्ल प्रथमः को मनाया जाता है। सिंधी समुदाय अपने इष्टदेव श्री झूलेलाल की जन्मोत्सव के रूप में भी चेटी चंड को मनाते हैं, जिन्हें लाल साई, उदेरो लाल, वरुण देव, दूलह लाल, दरिया लाल और जिंदा पीर के नाम से भी जाना जाता है। इसके दुसरे दिन सिंधारा दोज मनाई जाती है|

कलश स्थापना एवं जौ की बुआई

चैत्र नवरात्रि के पहले दिन घरों में कलश स्थापना की जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि कलश को सुख-समृद्धि, वैभव, मंगल कार्यों का प्रतीक माना गया है। कलश स्थापना से पूर्व लोग नहा-धोकर स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं ततपश्चात माँ दुर्गा की आराधना करते हुए नवरात्रि कलश की स्थापना करते हैं और दीप तथा धूप जलाकर माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना करते हैं। इसी तरह चैत्र नवरात्रि के अवसर पर कई भक्तों द्वारा अपने घरों में देशी घी की अखंड ज्योति भी जलाई जाती है।

इसके साथ ही लोगों द्वारा चैत्र नवरात्रि पूजन के दौरान एक जो दूसरा सबसे महत्वपूर्ण कार्य किया जाता है। वह है जौ (ज्वार) बोना इसके लिए लोगो द्वारा कलश स्थापना के साथ ही उसके चारों ओर थोड़ी मिट्टी भी फैलाई जाती है और इस मिट्टी के अंदर जौ बोया जाता है।

ऐसा करने के पीछे एक काफी रोचक कहना है और हममें से ज्यादेतर लोगो को इसके पीछे का कारण नही पता होता है। ऐसी मान्यता है कि जब सृष्टि की शुरुआत हुई थी। तो जो फसल सबसे पहले उत्पन्न हुई थी, वह जौ ही थी। यहीं कारण है कि पूजा पाठ के हर महत्वपूर्ण कार्य में जौ का ही उपयोग किया जाता है। इसके अलावा वसंत ऋतु में पैदा होने वाली पहली फसल भी जौ ही होती है। यहीं कारण है कि इसे माँ दुर्गा को चढ़ावे के रुप में अर्पित किया जाता है।

इसके साथ ही ऐसा माना जाता है कि नवरात्रि आरंभ में कलश के पास माँ दुर्गा को चढ़ावे के रुप में बोये गये यह जौ के बीज आने वाले भविष्य के विषय में संकेत देते हैं। यदि यह जौ तेजी से बढ़ते है तो माना जाता है कि घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहेगी। वहीं यदि जौ मुरझाए हुए हो या इनकी वृद्धि बहुत ही धीमी हो तो यह भविष्य में होने वाली किसी अशुभ घटना का संकेत देता है।

कन्यापूजन

नवरात्रि के पर्व में कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है। माँ दुर्गा के भक्तों द्वारा अष्टमी या नवमी के दिन कन्याओं की विशेष पूजा की जाती है। इसके अंतर्गत 9 कुंवारी कन्याओं को घर बुलाकर पूरे आदर के साथ उन्हें भोजन कराया जाता है और भोजन के पश्चात उन्हें दक्षिणा और भेंट भी दी जाती है।

मान्यताओं के अनुसार कन्या पूजन द्वारा धन, संपदा, सुख समृद्धि आदि जैसे कई विशेष लाभ मिलते हैं। कन्या पूजन के दौरान कन्याओं को फल, मिठाई, श्रृंगार की वस्तुएं, कपड़े, मिठाई तथा हलवा, काला चना और पूरी जैसे पकवान प्रस्तुत करने की प्रथा है।

चैत्र नवरात्रि के नौ दिन का प्रसाद तथा भोग

नवरात्रि के नौ दिन आदि शक्ति के नौ रुपों को समर्पित हैं और इनमें से हर देवी को हमें कुछ अलग भोग अर्पित करना चाहिए। यदि देवी के नौ रुपों को बताये गये क्रम अनुसार भोग अर्पित किये जायें तो चैत्र नवरात्रि पूजन का विशेष फल प्राप्त होता है।

  • प्रथमा - इस दिन को प्रतिपदा के नाम से जाना जाता है और यह देवी शैलपुत्री को समर्पित होता है। इस दिन हमें देवी को भोग में केला अवश्य अर्पित करना चाहिए।

  • द्वातिया - इस दिन को सिंधारा दौज के नाम से जाना जाता है और यह माता ब्रम्हचारिणी को समर्पित होता है। इस दिन हमें देवी माँ के भोग में देसी घी अवश्य अर्पित करना चाहिए।

  • तृतीय - इस दिन को गौरी तेज या सौजन्य तीज के नाम से जाना जाता है और यह देवी चंद्रघंटा को समर्पित होता है। इस दिन हमें देवी माँ के भोग में नमकीन मक्खन अवश्य अर्पित करना चाहिए।

  • चतुर्थी - इस दिन को वरद विनायक चौथ के नाम से जाना जाता है, यह दिन माता कूष्मांडा को समर्पित होता है। इस दिन हमें देवी माँ के भोग में मिश्री अवश्य अर्पित करना चाहिए।

  • पञ्चमी - इस दिन को लक्ष्मी पंचमी के नाम से जाना जाता है और यह दिन देवी स्कंदमाता को समर्पित होता है। इस दिन हमें देवी माँ के भोग में खीर या दूध अवश्य अर्पित करना चाहिए।

  • षष्ठी - इस दिन को यमुना छत या स्कंद सष्ठी के नाम से जाना जाता है, यह दिन देवी कात्यायनी को समर्पित होता है। इस दिन हमें देवी माँ को भोग स्वरुप माल पुआ अवश्य चढ़ाना चाहिए।

  • सप्तमी - इस दिन को महा सप्तमी के रुप में मनाया जाता है और यह दिन देवी कालरात्रि को समर्पित होता है। इस दिन हमें देवी माँ को भोग के रुप में शहद अवश्य चढ़ाना चाहिए।

  • अष्टमी - इस दिन को दुर्गा अष्टमी के नाम से जाना जाता है और यह दिन माता महागौरी को समर्पित होता है। इस दिन हमें देवी माँ को भोग के रुप में गुढ़ या नारियल अवश्य अर्पित करना चाहिए।

  • नवमी - इस दिन को नवमी या रामनवमी के नाम से जाना जाता है और यह दिन देवी सिद्धिदात्री को समर्पित होता है। इस दिन हमें देवी माँ को भोग के रुप में धान का हलवा अवश्य अर्पित करना चाहिए।

चैत्र नवरात्रि की आधुनिक परम्परा (Modern Tradition of Chaitra Navratri)

चैत्र नवरात्रि के मनाने के तरीके में अभी तक कोई खास परिवर्तन नही आया है। हालांकि अब इस पर्व को अब पहले के अपेक्षा काफी वृहद स्तर पर मनाये जाने लगा है। पहले के लोग चैत्र नवरात्रि के अवसर माँ दुर्गा के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने के लिए 9 दिनों का व्रत रहा करते थे और इस दौरान सिर्फ हल्का फलाहार तथा दूध-दही जैसी चीजों का सेवन किया करते थे।

लेकिन आजकल लोग व्रत के नाम पर आडंबर जैसे कार्य करने लगे हैं क्योंकि व्रत के दौरान लोगो द्वारा काफी मात्रा में फल-फूल और हलवे, पकौड़े और तमाम तरह के व्यंजन खाये जाते हैं। जोकि व्रत के वास्तविक मतलब को ही खत्म कर देते हैं।

हालांकि व्रत का मतलब यह भी नही है कि बिल्कुल ही कुछ ना खाया जाये लेकिन यदि तमाम तरह के व्यंजनो का भरपेट आनंद लेते हुए व्रत का पालन किया जाये तो इसका कोई विशेष औचित्य नही है। इसलिए यदि हम नवरात्रि के ऐतहासिक तथा वैज्ञानिक कारणों को बनाये रखना चाहते हैं तो हमें इसके पारम्परिक रुप का पालन अवश्य करना चाहिए।

चैत्र नवरात्रि का महत्व (Importance of Chaitra Navratri)

पुराणों में चैत्र नवरात्रि को विशेष महत्व दिया गया है, इसे आत्म शुद्धि और मुक्ति का आधार माना गया है। चैत्र नवरात्रि में माँ दुर्गा का पूजन करने से नकरात्मक ऊर्जा का खात्मा होता है और हमारे चारो ओर सकरात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

इसके साथ ही चैत्र नवरात्रि का यह पर्व ज्योतिषीय तथा खगोलीय दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दौरान सूर्य का मेष राषि में प्रवेश होता है, सूर्य का यह राशि परिवर्तन हर राशि पर प्रभाव डालता है तथा इसी दिन से नववर्ष के पंचाग गणना की शुरुआत होती है। चैत्र नवरात्रि के यह नौ दिन इतने शुभ माने जाते हैं कि इन नौ दिनों में आप यदि कोई नया कार्य आरंभ करना चाहते हैं, तो आपको किसी विशेष तिथी का इंतजार करने की आवश्यकता नही है आप पूरे चैत्र  नवरात्रि के दौरान कभी भी कोई भी नया कार्य आरंभ कर सकते हैं।

इसके साथ ही ऐसी भी मान्यता है कि जो व्यक्ति बिना किसी लोभ के चैत्र नवरात्रि में महादुर्गा की पूजा करता है, वो जन्म-मरण के इस बंधन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है।

चैत्र नवरात्रि का वैज्ञानिक कारण (Scientific Reason of Chaitra Navratri)

एक वर्ष में सूर्य की परिक्रमा काल में चार संधिया होती है। इन ऋतुओं के संधियों में अक्सर कई शारीरिक बीमारियां उत्पन्न हो जाती हैं। इन चार संधियों में से दो संधिया चैत्र तथा आश्विन नवरात्र के समय आती हैं। इस समय हमें अपने शरीर तथा मन को स्वस्थ तथा निर्मल रखने के लिए जिस विशेष प्रक्रिया का पालन किया जाता है, उसे ही नवरात्रि कहा जाता है।

कई लोगो द्वारा इन नौ दिनों तक व्रत या फिर विशेष प्रकार के खान-पान का पान किया जाता है। इस क्रिया के द्वारा हमारे शरीर में मौजूद अशुद्धियां बाहर आ जाती हैं और सात्विक आहार का पालन करने से हम जलवायु परिवर्तन द्वारा शरीर में उत्पन्न होने वाले तमाम विकारों से भी मुक्त रहते हैं तथा इससे हमारा शरीर उत्तर विचारों तथा सकरात्मक ऊर्जा से भी भर जाता है।

चैत्र नवरात्रि का इतिहास (History of Chaitra Navratri)

चैत्र नवरात्रि के पर्व का हिंदू धर्म में काफी महत्व है। इस दिन के प्रथम दिन यानि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है। चैत्र नवरात्रि को लेकर कई सारी पौराणिक कथाएं भी प्रचलित हैं। इसी में से एक पौराणिक कथा के अनुसार रामायाण काल में भगवान श्रीराम ने रावण का वध करने के लिए चैत्र महीनें में देवी दुर्गा को प्रसन्न करने हेतु उनकी उपासना की थी। जिससे प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें विजयश्री का आशीर्वाद प्रदान किया था।

इसके साथ ही ऐसा ही कई पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म भी चैत्र नवरात्रि के नौवें दिन ही हुआ था, इसलिए इसदिन को रामनवमी के नाम से भी जाना जाता है।

चैत्र नवरात्रि के दौरान जलवायु और सूर्य के प्रभावों का अनोखा संगम देखने को मिलता है। जो इसके महत्व को और भी बढ़ाने का कार्य करता है। इस नौ दिनों में विशेष खान-पान तथा व्रत पालन के द्वारा शरीर की सारी अशुद्धियां दूर हो जाती हैं और शरीर में नयी ऊर्जा तथा सकारात्मकता का संचार होता है।

यही कारण है कि नवरात्रि का यह विशेष पर्व मनाने के साक्ष्य वैदिक युग से भी पहले के हैं। ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि का यह पर्व प्रागैतिहासिक काल के समय से ही मनाया जा रहा है। इसीलिए नवरात्रि के पर्व को हिन्दू धर्म के सबसे प्राचीन त्योहारों में से एक माना जाता है।

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