शीतला माई मंदिर जबलपुर

 शीतला माई मंदिर जबलपुर 

Sheetla Mata Mandir Ghamapur Jabalpur

जबलपुर नगर निगम तीन पत्ती चौक से 12 मिनिट का सफ़र तय करने के बाद 4.1 दूरी पर माता शीतला (शीतला मई मंदिर) पूर्व घमापुर में पंहुचा जा सकता | घमापुर में बना शीतला माई का मंदिर भले 70 के दशक का है, लेकिन यहां प्रतिमा की स्थापना ब्रिटिश काल में की गई थी। पहले नीम का पेड़ था, जिसके नीचे प्राचीन प्रतिमा स्थापित की गई थी। बाद में श्रद्धालुओं के सहयोग से इसी स्थान पर मंदिर का निर्माण कर दिया गया। लाखों लोगों की आस्था इस मंदिर से जुड़ी हुई है। यहां के लोगों की मानें तो शीतला माई पूरे क्षेत्र की रक्षा करती हैं। माता के कई चमत्कार लोगों की जुबान पर आज भी हैं।

मंदिर के पिछले हिस्से में माई

मंदिर के पुजारी शीतला प्रसाद तिवारी बताते हैं कि अंग्रेजों के जमाने से शीतला माई की पूजा यहां होती आ रही है। पहले नीम के पेड़ के नीचे माता विराजमान थीं। लोगों ने सहयोग करके 1972 में यहां मंदिर निर्माण कराया। शीतला माई की प्राचीन प्रतिमा मंदिर के पिछले हिस्से में है। जबकि मंदिर निर्माण के दौरान नई प्रतिमा मुख्यद्वार के सामने रखी गई है।


गौड़कालीन है प्रतिमा

मंदिर में विराजमान शीतला माई की प्रतिमा को लेकर भ्रांतियां हैं। स्थानीय लोगों की मानें तो मंदिर में विराजमान शीतला माई की प्रतिमा गौड़कालीन है। वहीं कुछ इस प्रतिमा को ब्रिटिश काल की बताते हैं। मंदिर में प्राचीन प्रतिमा आज भी लोगों की आस्था का केन्द्र बनी हुई है। लोग इस प्रतिमा के पास मन्नत के नारियल बांधते हैं।

अष्टमी दिलाती है रोगों से मुक्ति

देवी शीतला की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को की जाती है। इस दिन शीतला माता का व्रत,पूजन किया जाता है। शीतला अष्टमी के दिन शीतला मां की पूजा में बासी ठंडे पकवानों का माता को भोग लगाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से देवी प्रसन्न होती हैं और व्रती के कुल में समस्त शीत जनित रोग ज्वर, चेचक, नेत्र विकार दूर होते हैं। प्राचीन काल में शीतला यानी चेचक की बीमारी महामारी के रूप में फैलती थी।

आरोग्यता मिलती है

कुछ स्थानों पर शीतला अष्टमी का व्रत करने का भी विधान है। शीतला सप्तमी या शीतला अष्टमी का व्रत करने से शीतला माता प्रसन्न होती हैं । उनकी प्रसन्नता से आरोग्यता प्राप्त होती है। मान्यता है कि जो यह व्रत करता है, उसके परिवार में दाहज्वर, पीतज्वर, दुर्गंधयुक्त फोड़े, नेत्र के समस्त रोग तथा ठंड के कारण होने वाले रोग नहीं होते हैं।

 


स्कन्द पुराण के अनुसार शीतला माता

शीतला माता एक प्रसिद्ध हिन्दू देवी हैं। इनका प्राचीनकाल से ही बहुत अधिक माहात्म्य रहा है। स्कंद पुराण में शीतला देवी का वाहन गर्दभ बताया गया है। ये हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण करती हैं। इन्हें चेचक आदि कई रोगों की देवी बताया गया है। इन बातों का प्रतीकात्मक महत्व होता है। चेचक का रोगी व्यग्रता में वस्त्र उतार देता है। सूप से रोगी को हवा की जाती है, झाडू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं। नीम के पत्ते फोडों को सड़ने नहीं देते। रोगी को ठंडा जल प्रिय होता है अत: कलश का महत्व है। गर्दभ की लीद के लेपन से चेचक के दाग मिट जाते हैं। शीतला-मंदिरों में प्राय: माता शीतला को गर्दभ पर ही आसीन दिखाया गया है। शीतला माता के संग ज्वरासुर- ज्वर का दैत्य, ओलै चंडी बीबी - हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण- त्वचा-रोग के देवता एवं रक्तवती - रक्त संक्रमण की देवी होते हैं। इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणु नाशक जल होता है।

स्कन्द पुराण में इनकी अर्चना का स्तोत्र शीतलाष्टक के रूप में प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र की रचना भगवान शंकर ने लोकहित में की थी। शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा गान करता है, साथ ही उनकी उपासना के लिए भक्तों को प्रेरित भी करता है। शास्त्रों में भगवती शीतला की वंदना के लिए यह मंत्र बताया गया है:

"वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।।
मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।।"

अर्थात

गर्दभ पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में झाडू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की मैं वंदना करता हूं। शीतला माता के इस वंदना मंत्र से यह पूर्णत: स्पष्ट हो जाता है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। हाथ में मार्जनी झाडू होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए। कलश से हमारा तात्पर्य है कि स्वच्छता रहने पर ही स्वास्थ्य रूपी समृद्धि आती है।




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