अनादि शक्ति माता काली मंदिर “चण्डीधाम”

 

अनादि शक्ति माता काली मंदिर “चण्डीधाम”

न्यू रामनगर आधारताल म.प्र. 482004

 जबलपुर शहर से 6.3 km दूर 25 मिनट का सफ़र तय करने के पश्चात् अनादि शक्ति माता काली मंदिर “चण्डीधाम” तक पंहुचा जा सकता जहा माँ माता काली पाने भक्तों पर कृपा बरसाती है|

स्थापना वर्ष : अनादि शक्ति माता काली मंदिर “चण्डीधाम” की स्थापना 1992 को अश्विन नवरात्रि (शारदा नवरात्रि ) में हुई | जिसमें पूर्ण सात्विक मन्त्रों के साथ माता काली के गर्भ गृह की स्थापना माता काली की असीम कृपा से हुई |

महत्व :

चण्डीधाम मंदिर में 18 फीट की माता महाकाली स्थापित हैं| मंगलवार 16 मार्च 2010 को अनादि शक्ति माता काली की स्थापना, पूर्ण प्राण प्रतिष्ठा सात्विक हिंदु सांस्कृतिक पद्धति से की गई| कई मायनों में यह दिवस बहुत पवित्र था, इस दिन माता रानी (माता काली ) के नवरात्री पर्व (चैत्र ), हिंदु नव वर्ष, सिन्धी नव वर्ष (स्वामी झूलेलाल जयंती) का आरम्भ होता है और भारतवर्ष का नव वर्ष विक्रम संवत 2067 आरंभ हुआ |

शिला पूजन 

शिला पूजन का हिंदु धर्म में अपना विशेष महत्त्व है और संभवत: माताकाली की यह 18 फीट की प्रतिमा एक ही शिला में बनी हुई है| माता काली की यह मनोरम प्रतिमा राजिस्थान की अनोखी कलाकृतियों का एक अद्भुत उदहारण है जिसे एक शिला में ही बनाया गया है|


मान्यता :

जो भक्त माता काली की सच्चे मन से पूर्ण श्रद्धा के साथ सेवा करता है उसकी मनोकामनाएं माताकाली अवश्य पूर्ण करती है|

चण्डीधाम “अनादि शक्ति माता काली मंदिर”

माता काली की 18 फीट की प्रतिमा है, साथ ही 11 फीट श्री कृष्णा भगवान (एक ही शिला में निर्मित) अपने मंदिर में विराजमान है| श्री कृष्णा भगवन की यह विशाल प्रतिमा राजस्थान की कलाकृति  की अनोखी पहचान है| साथ में देवी गंगा, माँ यमुना देवी, नर्मदा देवी, भगवान शंकर, भद्रकाली माता, मनसा देवी, विन्ध्यावासनी, खेरमाई माता, बंजारी माता, शारदा माता, शीतला माता, शनि महाराज, दुर्गा माँ अपनी शक्तियों के साथ स्थापित है|

सेवा समिति :

माताकाली परिवार एवं समस्त भक्तगण, अनादि शक्ति माता काली मंदिर “चण्डीधाम”

निवेदन :

संसार के सभी प्राणी माताकाली के जन्य है, माता ने कभी बलि स्वीकार नहीं की है, कृपया माताकाली को मीठे का भोग लगायें|

पूजन विधि – भोग :

सात्विक हिंदु पद्धति से पूजन, भोग- फल, मिष्ठान, खीर-पूरी, कन्या पूजा (कन्या भोज (भोजन))


॥अथार्गलास्तोत्रम्॥

ॐ अस्य श्रीअर्गलास्तोत्रमन्त्रस्य विष्णुर्ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, 
श्रीमहालक्ष्मीर्देवता, श्रीजगदम्बाप्रीतये सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः॥

ॐ नमश्‍चण्डिकायै॥

मार्कण्डेय उवाच

ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥१॥

जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते॥२॥

मधुकैटभविद्राविविधातृवरदे नमः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥३॥

महिषासुरनिर्णाशि भक्तानां सुखदे नमः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥४॥

रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥५॥

शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्राक्षस्य च मर्दिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥६॥

वन्दिताङ्‌घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥७॥

अचिन्त्यरुपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥८॥

नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥९॥

स्तुवद्‌भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥१०॥

चण्डिके सततं ये त्वामर्चयन्तीह भक्तितः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥११॥

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥१२॥

विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥१३॥

विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥१४॥

सुरासुरशिरोरत्ननिघृष्टचरणेऽम्बिके।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥१५॥

विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥१६॥

प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥१७॥

चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रसंस्तुते परमेश्‍वरि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥१८॥

कृष्णेन संस्तुते देवि शश्‍वद्भक्त्या सदाम्बिके।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥१९॥

हिमाचलसुतानाथसंस्तुते परमेश्‍वरि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥२०॥

इन्द्राणीपतिसद्भावपूजिते परमेश्‍वरि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥२१॥

देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पविनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥२२॥

देवि भक्तजनोद्दामदत्तानन्दोदयेऽम्बिके।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥२३॥

पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥२४॥

इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः।
स तु सप्तशतीसंख्यावरमाप्नोति सम्पदाम्॥२५॥

इति देव्या अर्गलास्तोत्रं सम्पूर्णम्।

अनादि शक्ति माता काली मंदिर “चण्डीधाम”